Tuesday, May 15, 2012

००१ शलोक भगत कबीर जी के

कबीर मेरी सिमरनी रसना ऊपर रामु || 
आदि जुगादी सगल भगत ता को सुखु बिस्रामु || १ || 
( शलोक भगत कबीर जीउ के, श्री आदि ग्रन्थ , पन्ना १३६४ )

इस शलोक में भगत कबीर जी संसारी माला (तसबी) का खंडन करते हुए कह रहे है कि 'रसना ऊपर राम' (बुद्धी के ऊपर ब्रह्म-ज्ञान की परत चड़ते रहना , बुद्धी में शबद-विचार चलते रहना और उसका विवेक-बुद्ध बन जाना) ही असल में मेरी माला है | आजतक जितने भी भगत जन हुए हैं उन सभी को इसी सिमरनी के कारन सुख और मन का टिकाव मिला है | इस शलोक में कबीर जी अपनी सिमरन शक्ति को ही सिमरनी मानते हैं |




Thursday, May 10, 2012

Parmeshwar Saagar Hai

हम पानी की बूँद की तरह हैं और परमेश्वर सागर है , इसलिए हमारी इच्छा (ख्वाइश, मर्ज़ी, हुकम, इंशा,मंशा, इरादा, भाणा ) उसकी इच्छा के आगे काम नहीं करती | जब जीव के अन्दर का ह्रदय हेमकुन्ट बन जाता है (ब्रह्म-अग्न से तृष्णा की अग्न ख़तम होकर शीतलता और ठंडक आ जाती है ) तब यह उसके हुकम(भाणे) में चलता है |