Saturday, December 22, 2012

Gurmukhi Ramayan


गुरमुखि रामायण क्या है ?

आज तक आपने हिन्दूमत वाली रामायण के सन्दर्भ में बहुत कुछ देखा और सुना होगा | कई विद्वानों ने गुरबाणी को अर्थाने (व्याख्या करने , टिके लिखने ) के समय हिन्दूमत वाले राम को ही पेश किया है , परन्तु अफ़सोस कि आज तक किसी ने इस बात पर गौर नहीं किया और न ही इस बात की चर्चा ही करी कि "गुरमुखि रामायण क्या है ? "



धरम सिंघ निहंग सिंघ जी ने गुरबाणी के अर्थ गुरबाणी में से ही करके गुरबाणी के सच के खोजिओं को एक नयी दिशा प्रदान की | आप जी इस गुरमुखि रामायण को आप सुनो और दुसरे चाहवान जिज्ञासुओं को भी बताओ | 
हम सचखोज अकैडमी के शिक्षार्थी आप की रूहानी तरक्की के लिए निहंग सिंघ जी की खोज पेश करते रहेंगे |

हिन्दूमत की रामायण के किरदारों के नामों का जिक्र गुरबाणी में है जैसे कि दसरथ, जनक ,राम , रामचंद , सीता, विभिक्षण(बभिखण) इत्यादि | आप ये अवश्य जानना चाहेंगे कि इन किरदारों का अर्थ (मायने ) गुरबाणी अनुसार क्या है ...?



Asht Dhaat Kee Kaayaa




असट धातु की काइआ :- 

१ ( आत्मा+परात्मा) के निराकारी शरीर(काइआ) के ८ (असट) गुण(धातु) जो कि मूल-मन्त्र (ओअंकारु, सतिनामु, करता पुरखु, निरभउ, निरवैरु, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं) में बताये गए हैं | 
मन के अंतरात्मा से जुड़े रहने (अंतर्मुखी होने) और गुरबाणी की शबद विचार से हासिल गिआन द्वारा ही इन ८ धातुओं के बारे में भेद पता चलता है |

असटमी असट धातु की काइआ ॥
ता महि अकुल महा निधि राइआ ॥
गुर गम गिआन बतावै भेद ॥
उलटा रहै अभंग अछेद ॥९॥
-गउड़ी थिंती (भ. कबीर ), श्री आदि ग्रन्थ पन्ना ३४३









Siraad


गुरबाणी पितरों (बड़े-बड़ेरों) की तथाकथित आत्मिक शांति और मुक्ति और उनको मान सम्मान देने के लिए किये जाने वाले सिराध रूपी प्रपंच का खंडन करती है | मृतक पितरो को अर्पण किया गया खीर-पूरी का भोजन केवल कुत्तों(कूकर) और कव्वों (कऊआ) को ही नसीब होता है :-

रागु गउड़ी बैरागणि कबीर जी
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
जीवत पितर न मानै कोऊ मूएं सिराध कराही ॥
पितर भी बपुरे कहु किउ पावहि कऊआ कूकर खाही ॥१॥
मो कउ कुसलु बतावहु कोई ॥
कुसलु कुसलु करते जगु बिनसै कुसलु भी कैसे होई ॥१॥ रहाउ ॥
माटी के करि देवी देवा तिसु आगै जीउ देही ॥
ऐसे पितर तुमारे कहीअहि आपन कहिआ न लेही ॥२॥
सरजीउ काटहि निरजीउ पूजहि अंत काल कउ भारी ॥
राम नाम की गति नही जानी भै डूबे संसारी ॥३॥
देवी देवा पूजहि डोलहि पारब्रहमु नही जाना ॥
कहत कबीर अकुलु नही चेतिआ बिखिआ सिउ लपटाना ॥४॥१॥४५॥
गउड़ी (भ.कबीर ), श्री आदि ग्रन्थ, पन्ना ३३२