वाहिगुरू जी का खालसा ॥ वाहिगुरू जी की फतिह ॥..... व्याख्याकार : धरम सिंघ निहंग सिंघ सच्चखोज अकैडमी..... हमारे मन में यह सवाल बार-बार उठता है कि सिख्ख तो बहुत दिखायी दे रहे हैं पर असल सिख्खी कहीं दिखायी नहीं दे रही | इसका कारण गुरबाणी से समझने वालों ने यह बताया कि जब तक गुरबाणी के असली अर्थ नहीं होते तब तक यह दर्द ज्यूँ का त्यूँ ही बना रहेगा | सच्चखोज अकैडमी के सहयोग से यह उपराला शुरू किया गया है जिससे गुरबाणी के सच की खोज, अख्खरी (अक्षरी ) अर्थों से आगे जाकर की जा सके |
Thursday, May 10, 2012
Parmeshwar Saagar Hai
हम पानी की बूँद की तरह हैं और परमेश्वर सागर है , इसलिए हमारी इच्छा (ख्वाइश, मर्ज़ी, हुकम, इंशा,मंशा, इरादा, भाणा ) उसकी इच्छा के आगे काम नहीं करती | जब जीव के अन्दर का ह्रदय हेमकुन्ट बन जाता है (ब्रह्म-अग्न से तृष्णा की अग्न ख़तम होकर शीतलता और ठंडक आ जाती है ) तब यह उसके हुकम(भाणे) में चलता है |
Labels:
परमेश्वर सागर है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment