पियू दादे जेविहा पोता परवाणु ॥
- रामकली की वार; ३ (भ. बलवंड सता ), श्री आदि ग्रन्थ; पन्ना ९६८
पियू दादे और पोते के बारे में जानकारी लेने के लिए हम गुरमत की इस पंक्ति को आधार बना कर चलेंगे ।
पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा ॥ - पन्ना १४८
भाव, बिना समझे(विचारे) महज पढने मात्र से ही गुरबाणी में बताये गए सच को समझा नहीं जा सकता ।
आओ गुरबाणी में से विचारें की मन, जो कि जोत सरूप है , इसके माता-पिता कौन हैं?
कुछ परमाण:-
तूं मेरा पिता तूंहै मेरा माता ॥- पन्ना १०३
मेरा पिता माता हरि नामु है हरि बंधपु बीरा ॥ -पन्ना १६३
तूं गुरु पिता तूंहै गुरु माता तूं गुरु बंधपु मेरा सखा सखाइ ॥३॥ -पन्ना १६७
गुरदेव माता गुरदेव पिता गुरदेव सुआमी परमेसुरा ॥ -पन्ना २५०
हरि नामु पिता हरि नामो माता हरि नामु सखाई मित्रु हमारा ॥ - पन्ना ५९२
हरि आपे माता आपे पिता जिनि जीऊ उपाइ जगतु दिखाइआ ॥ - पन्ना ९२१
हरि जी माता हरि जी पिता हरि जीऊ प्रतिपालक ॥ - पन्ना ११०१
अतः मन के माता-पिता दोनों "चित्त , गुर , हरि, गुरदेव , सतिगुर , गोबिंद, प्रभ " इत्यादि हैं , जो कि पूरणब्रह्म का रूप हैं ।
अब बूझो (जानो) कि दादा यां बाबा कौन है ?
यह परमेश्वेर , गुरु, सतिगुरु , यां प्रभू है जो कि पारब्रह्म का रूप है ।
पीऊ दादे का खोलि डिठा खजाना ॥ - पन्ना १८६
इसका भी अर्थ यही बनेगा कि गुरबाणी "पियू दादे का" खजाना है ।
पीऊ :- चित्त, गुर , हरि , सतिगुर ,गुरदेव,गोबिंद, प्रभ
दादा :- परमेश्वेर , गुरु, सतिगुरु , यां प्रभू
पोता :- मन , ध्यान , सुरत
- गुरजीत सिंघ आस्ट्रेलिया
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