Saturday, October 6, 2012

Sikkhi saprdaay nahi hai


सच किसी सम्प्रदाय के घेरे में नहीं आता, सिक्खी सारी मानवता का धरम है | यह अलग बात है कि आज सिक्खों ने सिक्खी को एक सम्प्रदाय बना दिया पर मूल रूप से सिक्खी कोई सम्प्रदाय या कौम नहीं है |  

रागु आसा घरु २ महला ४ ॥
किस ही धड़ा कीआ मित्र सुत नालि भाई ॥
किस ही धड़ा कीआ कुड़म सके नालि जवाई ॥
किस ही धड़ा कीआ सिकदार चउधरी नालि आपणै सुआई ॥
हमारा धड़ा हरि रहिआ समाई ॥१॥
हम हरि सिउ धड़ा कीआ मेरी हरि टेक ॥
मै हरि बिनु पखु धड़ा अवरु न कोई हउ हरि गुण गावा असंख अनेक ॥१॥ रहाउ ॥
जिन्ह सिउ धड़े करहि से जाहि ॥
झूठु धड़े करि पछोताहि ॥
थिरु न रहहि मनि खोटु कमाहि ॥
हम हरि सिउ धड़ा कीआ जिस का कोई समरथु नाहि ॥२॥
एह सभि धड़े माइआ मोह पसारी ॥
माइआ कउ लूझहि गावारी ॥
जनमि मरहि जूऐ बाजी हारी ॥
हमरै हरि धड़ा जि हलतु पलतु सभु सवारी ॥३॥
कलिजुग महि धड़े पंच चोर झगड़ाए ॥
कामु क्रोधु लोभु मोहु अभिमानु वधाए ॥
जिस नो क्रिपा करे तिसु सतसंगि मिलाए ॥
हमरा हरि धड़ा जिनि एह धड़े सभि गवाए ॥४॥
मिथिआ दूजा भाउ धड़े बहि पावै ॥
पराइआ छिद्रु अटकलै आपणा अहंकारु वधावै ॥
जैसा बीजै तैसा खावै ॥
जन नानक का हरि धड़ा धरमु सभ स्रिसटि जिणि आवै ॥५॥२॥५४॥
- राग आसा(म. ५), पन्ना ३६६

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